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अष्टांग योग(Ashtanga Yoga) यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि
अष्टांग योग(Ashtanga Yoga)
योगसूत्र के रचनाकार पतंजलि को कौन नहीं जानता हैं पतंजलि को शेषनाग का अवतार कहा जाता हैं। भारतीय दर्शन साहित्य पतंजलि ने 3 प्रमुख ग्रन्थ लिखे हैं – योगसूत्र ग्रन्थ, अष्टाध्यायी पर भाष्य ग्रन्थ और आयुर्वेद पर ग्रन्थ।
पतंजलि ने ही सबसे पहले योग विद्या को व्यवस्थित रूप दिया था। पतंजलिअष्टांग योग के जनक हैं| पतंजलि के अष्टांग योग में धर्म
और दर्शन की सभी विद्याओं के समावेश के साथ-साथ आपके शरीर और मन के विज्ञान का भी मिश्रण हैं|
अष्टांग योग को राजयोग के नाम से भी जाना जाता है। योग के आठ अंगों में सभी प्रकार के योग समल्लित हो जाते है। भगवान बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग भी योग के उक्त आठ अंगों का ही भाग है। पतंजलि के ‘योग सूत्र’ ग्रन्थ में लिखितअष्टांग योग बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग के बाद की रचना है।
अष्टांग योग :अष्टांग योग से तात्पर्य योग के आठ अंगो से हैं। पतंजलि ने योग की सभी विद्याओं को आठ अंगों में विभाजित कर दिया था। 200 ईसा पूर्व के दौरान ही पतंजलि ने योग क्रियाओ को योग-सूत्र नामक ग्रन्थ में लिपिबद्ध कर दिया था| योग-सूत्र ग्रन्थ के रचनाकार होने की वजह से महर्षि पतंजलि को योग के पिता भी कहा जाता है।पतंजलि के योग सूत्र में वर्णित ये आठ अंग हैं-
1) यम2) नियम3) आसन4) प्राणायाम5) प्रत्याहार6) धारणा7) ध्यान8) समाधि
उपरोक्त आठ अंगों के अलावा इन अंगो के उप अंग भी हैं। लेकिन वर्तमान समय में योग के तीन ही अंग प्रचलित हैं
1) आसन2) प्राणायाम3) ध्यान मुद्राये
योग सूत्र : 200 ईसा पूर्व में महर्षि पतंजलि द्वारा लिखित 'योगसूत्र' योग दर्शन का पहला सबसे व्यवस्थित और वैज्ञानिक अध्ययन माना जाता है। योगदर्शन चार विस्तृत भाग में विभाजित हैं इन भाग को पद कहा गया है| ये चार पद निम्नलिखित हैं
1) समाधिपद2) साधनपद3) विभूतिपद4) कैवल्यपद
समाधिपद का मुख्य विषय मन की विभिन्न वृत्तियों का नियमित कर समाधि के द्वारा आत्म साक्षात्कार को करना है। साधनपद में पाँच बहिरंग साधन- यम,नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार का पूर्ण वर्णन है। विभूतिपद में अंतरंग तीन धारणाये ध्यान और समाधि का पूर्ण वर्णन है। इसमें योग को करने से प्राप्त होने वाली सभी सिद्धियों का भी वर्णन किया हुआ है| कैवल्यपद मुक्ति की वह सबसे उच्च अवस्था है जहाँ एक योग साधक अपने जीवन के मूल स्रोत से एकीकरण हो जाता है।
महर्षि पतंजलि ने दुसरे और तीसरे पद में अष्टांग योग साधन का उपदेश दिया है, उसका संक्षिप्त विवरण निम्न है:-
1) यम: शरीर की, वाणी की और मानसिक शांति के लिए अहिंसा का मार्ग अपनाना, झूठ न बोलना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य आदि का पालन करना आदि पाँच आचरण हैं। इनका पालन जो मनुष्य नहीं करता हैं वह व्यक्ति अपने जीवन और समाज दोनों को दुष्प्रभावित करता हैं।
2) नियम: मनुष्य को कर्तव्य का पालन करना तथा जीवन को सुव्यवस्थित तरीके से चलने हेतु कुछ नियमों का पालन किया जाता है। इनके अंतर्गत शौच या शारीरिक शुद्धि, संतोष करना, तप करना,स्वाध्याय में तल्लीन रहना तथा ईश्वर का समावेश है। शौच में बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ही प्रकार की शुद्धि सम्मिलित है।
3) आसन: पतंजलि ने स्थिर तथा सुखासन में बैठने की क्रिया को आसन के नाम से सम्बोधित किया है। वास्तव में अष्टांग आसन हठयोग का एक मुख्य विषय ही तो है।
4) प्राणायाम: योग में नाड़ी के साधन और उनकी जागृति के लिए किया जाने वाला सांसों को अन्दर और बहार छोड़ना ही प्राणायाम है। प्राणायाम मन की चंचलता पर अंकुश लगाने और मन को अकग्र करने में बहुत सहायक है।
5) प्रत्याहार: इंद्रियों को विषयों से दूर हटाने का नाम ही प्रत्याहार है। प्रत्याहार के माध्यम से इन्द्रियो पर विजय पाई जा सकती हैं|
6) धारणा: मन को एक स्थान पर पूर्णत: केंद्रित करना ही धारणा है।
7) ध्यान: जब ध्येय वस्तु का स्मरण करते हुए मन को उसी दिशा में एकाग्र कर लिया जाता है तो उसे ध्यान कहते हैं। पूर्ण ध्यान की स्थिति में आपका ध्यान किसी एक विषय पर पूर्णतया केन्द्रित हो जाता हैं|
8) समाधि: यह आपके मन की वह अवस्था है जिसमें आपका मन पूरी तरह से ध्येय वस्तु के चिंतन में तल्लीन हो जाता है। किसी और विषय-वस्तु में उसका मन नहीं भटकता हैं योग दर्शन में समाधि के द्वारा ही मोक्ष प्राप्ति संभव है।